नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 29 Jul 2024 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस- 19: भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BSSA) की शुरूआत भारत की न्यायिक तथा सुरक्षा प्रणालियों के आधुनिकीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण :

    • तीन नए कानूनों का संक्षिप्त में परिचय दीजिये।
    • नए कानूनों में किये गए प्रमुख बदलावों की व्याख्या कीजिये।
    • संबंधित चुनौतियों और आलोचनाओं पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    1 जुलाई, 2024 तीन नए आपराधिक कानूनों के कार्यान्वयन के साथ भारतीय न्याय प्रणाली के लिये एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है: भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)। ये कानून क्रमशः मौजूदा भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPc) तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदलने के लिये बनाए गए हैं।

    मुख्य भाग:

    भारतीय न्याय संहिता (BNS) में किये गए नए बदलाव:

    • भारतीय न्याय संहिता (BNS) 163 साल पुरानी IPC की जगह लेगी, जिससे दंड कानून में महत्त्वपूर्ण बदलाव आएंगे।
    • धारा 4 के तहत सज़ा के रूप में सामुदायिक सेवा एक उल्लेखनीय परिचय है। हालाँकि की जाने वाली सामुदायिक सेवा की सटीक प्रकृति अभी भी अनिर्दिष्ट है।
    • यौन अपराधों में कड़े उपाय किये गए हैं, कानून में उन लोगों के लिये दस साल तक की कैद और ज़ुर्माना निर्धारित किया गया है जो बिना किसी इरादे के शादी का वादा करके धोखे से यौन संबंध बनाते हैं। नया कानून धोखे को भी संबोधित करता है, जिसमें किसी की पहचान छिपाकर रोज़गार, पदोन्नति या शादी से संबंधित झूठे वादे शामिल हैं।
    • संगठित अपराध अब व्यापक कानूनी जाँच का सामना कर रहा है, जिसमें अवैध गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है। इन गतिविधियों में अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, जबरन वसूली, भूमि हड़पना, अनुबंध हत्या, आर्थिक अपराध, साइबर अपराध और व्यक्तियों, ड्रग्स, हथियारों या अवैध वस्तुओं या सेवाओं की तस्करी शामिल है।
    • संगठित अपराध सिंडिकेट के सदस्यों के रूप में या ऐसे सिंडिकेट की ओर से मिलकर कार्य करने वाले व्यक्तियों या समूहों द्वारा वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिये मानव तस्करी को कठोर दंड का सामना करना पड़ेगा। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भौतिक लाभ के लिये हिंसा, धमकी, डराने-धमकाने, जबरदस्ती या अन्य गैरकानूनी तरीकों से अंजाम दिये गए इन अपराधों के लिये कड़ी सज़ा दी जाएगी।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्यों के लिये भारतीय न्याय संहिता ने आतंकवादी कृत्य को ऐसी किसी भी गतिविधि के रूप में परिभाषित किया है जो आतंक फैलाने के इरादे से देश एकता एवं अखंडता को खतरे में डालते हैं।
    • यह मॉब लिंचिंग द्वारा हत्या से जुड़े मामले में बदलाव होगा, जब पाँच या उससे अधिक व्यक्तियों का समूह मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य समान आधार पर हत्या करता है, जिसमे मृत्युदंड या आजीवन कारावास के साथ ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया है।

    BNS2 की आलोचना:

    • आपराधिक उत्तरदायित्व आयु विसंगति: आपराधिक उत्तरदायित्व की आयु सात वर्ष बनी हुई है, आरोपी की परिपक्वता के आधार पर इसे 12 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। यह अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अनुशंसाओं के अनुरूप नहीं है।
    • बाल अपराध परिभाषाओं में विसंगतियाँ: BNS2 एक बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है तथा बच्चों के विरुद्ध कई अपराधों के लिये आयु सीमा भिन्न होती है। उदाहरण के लिये बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिये उम्र की आवश्यकता भिन्न-भिन्न होती है, जिससे असंगतता की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • राजद्रोह के प्रावधान तथा संप्रभुता संबंधी चिंताएँ: BNS2 राजद्रोह को एक अपराध के रूप में समाप्त करता है जिससे भारत की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को खतरे में डालने से संबंधित कृत्य राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रख सकते हैं।
    • बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC प्रावधानों को बरकरार रखना: BNS2 ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर IPC के प्रावधानों को बरकरार रखा है। यह न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) की सिफारिशों पर विचार नहीं करता है जैसे कि बलात्कार के अपराध को लिंग तटस्थ बनाना और वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में शामिल करना।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में किये गए नए बदलाव:

    • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS2) आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) को प्रतिस्थापित करने का प्रयास करती है, जिसमें महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शामिल हैं,
    • जो पहली बार अपराध करने वालों को उनकी अधिकतम सज़ा का एक तिहाई हिस्सा पूरा करने के बाद ज़मानत पाने की अनुमति देता है, आजीवन कारावास या कई आरोपों वाले मामलों को छोड़कर, जिससे विचाराधीन कैदियों के लिये अनिवार्य ज़मानत के लिये अर्हता प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
    • कम-से-कम सात साल की कैद की सज़ा वाले अपराधों के लिये फोरेंसिक जाँच अनिवार्य है। इसमें फोरेंसिक विशेषज्ञों को अपराध स्थलों पर साक्ष्य एकत्र करने और प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक रूप से रिकॉर्ड करने की आवश्यकता होती है। जिन राज्यों में फोरेंसिक सुविधाओं की कमी है, उन्हें अन्य राज्यों में मौजूद सुविधाओं का उपयोग करना चाहिये।
    • प्रक्रियाओं के लिये समय-सीमा:
      • बलात्कार पीड़ितों की जाँच करने वाले चिकित्सकों को सात दिनों के भीतर जाँच अधिकारी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
      • बहस पूरी होने के 30 दिनों के भीतर निर्णय सुनाया जाना चाहिये, जिसे 60 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
      • पीड़ितों को 90 दिनों के भीतर जाँच से संबंधित जानकारी के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
      • सत्र न्यायालयों को ऐसे आरोपों पर पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर आरोप तय करने की आवश्यकता होती है।
    • न्यायालयों का पदानुक्रम
      • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) भारत में आपराधिक मामलों के निपटारे के लिये न्यायालयों का एक पदानुक्रम स्थापित करती है। इनमें शामिल हैं
        • मजिस्ट्रेट की अदालतें: ये अधीनस्थ अदालतें अधिकांश आपराधिक मामलों की सुनवाई करती हैं।
        • सत्र न्यायालय: सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में ये अदालतें मजिस्ट्रेट की अदालतों की अपील सुनता है।
        • उच्च न्यायालय: इन अदालतों के पास आपराधिक मामलों और अपीलों की सुनवाई तथा निर्णय करने का अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र है।
        • सर्वोच्च न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालयों की अपील सुनता है और कुछ मामलों में अपने मूल अधिकार क्षेत्र का भी प्रयोग करता है।
        • CrPC राज्य सरकारों को दस लाख से अधिक आबादी वाले किसी भी शहर या कस्बे को महानगरीय क्षेत्र के रूप में नामित करने का अधिकार देता है, जिससे महानगर मजिस्ट्रेट की स्थापना होती है। नया कानून इस प्रावधान को खारिज कर देता है।
    • BNSS में प्रमुख मुद्दे:
      • शुरुआती 40 या 60 दिनों के भीतर 15 दिनों की पुलिस हिरासत की अनुमति दी गई है।
      • पुलिस हिरासत की मांग करते समय जाँच अधिकारी को कारण बताने के लिये बाध्य नहीं किया गया है।
      • गिरफ्तारी के दौरान हथकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है, जो सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों और NHRC के दिशा-निर्देशों का खंडन करता है।
      • कई आरोपों के मामले में अनिवार्य ज़मानत का दायरा सीमित किया गया है। भारत में दलील सौदेबाज़ी को सज़ा सौदेबाज़ी तक सीमित किया गया है।
      • ज़मानत को सीमित करने और दलील सौदेबाज़ी के दायरे को सीमित करने से जेलों में भीड़ कम हो सकती है।
      • चल संपत्ति के अलावा अचल संपत्ति को भी ज़ब्त करने की शक्ति बढ़ाई गई है।
      • कई प्रावधान मौजूदा कानूनों के साथ ओवरलैप करते हैं।
      • BNSS ने सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित CrPC प्रावधानों को बरकरार रखा है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या परीक्षण प्रक्रिया और सार्वजनिक व्यवस्था रखरखाव को नियंत्रित करने वाले कानूनों को एकीकृत किया जाना चाहिये या उनके अलग-अलग कार्यों को देखते हुए अलग-अलग माना जाना चाहिये।
    • BSA 2023 में लाये गए प्रमुख बदलाव:
      • दस्तावेज़ी साक्ष्य: IEA के तहत दस्तावेज़ में लेख, मानचित्र और कैरिकेचर शामिल होते हैं। BSA में इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को भी दस्तावेज़ के रूप में शामिल किया गया है। दस्तावेज़ी साक्ष्य में प्राथमिक एवं द्वितीयक साक्ष्य शामिल हैं।
        • प्राथमिक साक्ष्य में मूल दस्तावेज़ और उसके अंग, जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड एवं वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं।
        • द्वितीयक साक्ष्य में ऐसे दस्तावेज़ और मौखिक विवरण शामिल होते हैं जो मूल दस्तावेज़ की सामग्री को साबित कर सकते हैं।
        • BSA निम्नलिखित को शामिल करने के लिये द्वितीयक साक्ष्य का विस्तार करता है: (i) मौखिक और लिखित स्वीकृति/स्वीकारोक्ति; तथा (ii) उस व्यक्ति की गवाही जिसने दस्तावेज़ की जाँच की है एवं दस्तावेज़ों की जाँच करने में कुशल है।
      • मौखिक साक्ष्य: IEA के तहत मौखिक साक्ष्य में जाँच के अधीन किसी तथ्य के संबंध में साक्षियों द्वारा अदालतों के समक्ष दिये गए बयान शामिल हैं। BSA मौखिक साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत करने की भी अनुमति देता है।
        • इससे साक्षियों, आरोपी व्यक्तियों और पीड़ितों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाही देने की अनुमति मिल जाएगी।
      • साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की ग्राह्यता: दस्तावेज़ी साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की जानकारी शामिल होती है जो कंप्यूटर द्वारा उत्पादित ऑप्टिकल या मैग्नेटिक मीडिया में मुद्रित या संग्रहित की गई है।
        • ऐसी जानकारी कंप्यूटर या विभिन्न कंप्यूटरों के संयोजन द्वारा संग्रहीत या संसाधित की जा सकती है।
      • संयुक्त विचारण (Joint Trials): संयुक्त विचारण से तात्पर्य एक ही अपराध के लिये एक से अधिक व्यक्तियों के विचारण या ट्रायल से है। IEA के अनुसार, संयुक्त विचारण में किसी एक आरोपी द्वारा की गई संस्वीकृति जो अन्य आरोपियों को भी प्रभावित करती है, साबित हो जाती है तो इसे दोनों के विरुद्ध संस्वीकृति माना जाएगा।
        • BSA इस प्रावधान में एक स्पष्टीकरण शामिल करता है जिसमें कहा गया है कि कई व्यक्तियों के विचारण में, किसी एक आरोपी के फरार रहने या गिरफ्तारी वारंट का जवाब नहीं देने की स्थिति में भी इसे संयुक्त विचारण ही माना जाएगा।
    • BSA , 2023 में प्रमुख मुद्दे:
      • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड:
        • तलाशी, ज़ब्ती और जाँच प्रक्रिया के दौरान इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़ के बारे में चिंताएँ
        • आमतौर पर, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार्य होने के लिये प्रमाण-पत्र द्वारा प्रमाणित किया जाना चाहिये।
          • अधिनियम इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को दस्तावेज़ों के रूप में वर्गीकृत करता है (जिन्हें प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं हो सकती है), जिससे विरोधाभास उत्पन्न होता है।
      • पुलिस के उत्तरदायित्त्व का बहिष्कार:
        • हिरासत में किसी व्यक्ति को लगी चोट के लिये पुलिस की ज़िम्मेदारी की धारणा का बहिष्कार।

    निष्कर्ष :

    जबकि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की शुरूआत भारत के कानूनी ढाँचे में एक महत्त्वपूर्ण आधुनिकीकरण प्रयास का प्रतिनिधित्व करती है, संबंधित चुनौतियाँ तथा आलोचनाएँ सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन, निरंतर प्रशिक्षण एवं सार्वजनिक जागरूकता पहल की आवश्यकता को उजागर करती हैं, ताकि कानून समाज में न्याय व सुरक्षा बढ़ाने के अपने इच्छित उद्देश्य की पूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow